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एयर इंडिया, भारत पेट्रोलियम जैसी कंपनियां चाहकर भी क्यों नहीं बेच पा रही सरकार?

एयर इंडिया उन कुछ मुख्य सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) में से एक है जिसे सरकार साल 2001 से बेचने की कोशिशें कर रही है. इस सरकारी विमानन कंपनी को बेचने के लिए सरकार अब तक इकलौता ख़रीदार भी नहीं ढूंढ पाई है.शर्मनाक! 'देश नहीं बिकने दूँगा' कहने वाले नरेंद्र मोदी अब देश की 28 सरकारी  कंपनियों को बेचने जा रहे हैं

एयर इंडिया इस समय अच्छी-ख़ासी मात्रा में क़र्ज़ में डूबी हुई है. साल 2018-19 में एयर इंडिया की सभी देनदारियां 70,686.6 करोड़ से ऊपर थीं.

घरेलू उड़ान कंपनी इंडियन एयरलाइंस के साथ 2007 में विलय के बाद भी यह कंपनी घाटे में चल रही है.

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2018 में सरकार इस एयरलाइन को दोबारा बेचने के लिए लेकर आई लेकिन इस बार भी उसको इसमें सफलता नहीं मिली क्योंकि सरकार इसकी 24 फ़ीसदी हिस्सेदारी अपने पास रखना चाहती थी. इस कारण से कई निवेशकों ने इसको ख़रीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाई.एयर इंडिया, भारत पेट्रोलियम जैसी कंपनियां चाहकर भी क्यों नहीं बेच पा रही  सरकार? - BBC News हिंदी

आख़िरकार जनवरी 2020 में सरकार ने घोषणा कर दी कि वह क़र्ज़ के भारी बोझ में दबी इस अंतरराष्ट्रीय विमानन कंपनी की पूरी हिस्सेदारी बेचने के लिए तैयार है.

हालिया मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, सरकार को कई ख़रीदारों ने इसे ख़रीदने में रूचि दिखाई है, जिनको चुनकर उन्हें प्रस्ताव भेजने को कहा जाएगा जिसके बाद नीलामी की प्रक्रिया शुरू होगी.

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मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इसको ख़रीदने में सिर्फ़ दो पक्षों की रूचि है. पहला टाटा सन्स की और दूसरा एयर इंडिया के कर्मचारी और अमेरिकी निवेश कंपनी इंटरप्स मिलकर इसको ख़रीदना चाहते हैं.मार्च तक बिक जाएगी Air India और BPCL, सरकार को होगा एक लाख करोड़ का फायदा - air  india and bpcl will be sold by march government will benefit one lakh crore

हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस वित्त वर्ष के अंत यानी मार्च तक एयर इंडिया को ख़रीदार नहीं मिल पाएगा.

चार्टर फ़्लाइट की सेवा देने वाले क्लब वन एयर के चीफ़ एग्ज़िक्युटिव (टेक्निकल) कर्नल संजय जुल्का बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, “यह साफ़ है कि यूपीए और एनडीए सरकारें विनिवेश को लेकर जो शर्तें लेकर आई थीं उनमें ख़ामियां रही हैं. वे अपने सलाहकारों पर भरोसा करते रहे हैं और भावी बोलीदाताओं को उन्होंने सुना नहीं. इसकी वजह से इस कंपनी के विनिवेश की प्रक्रिया इतनी लंबी चलती आई है जिसको पहले ही ठीक से किया जा सकता था.”

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दक्षिण एशिया के लिए विमानन परामर्शदाता कंपनी सेंटर फ़ॉर एशिया पैसिफ़िक एविएशन के सीईओ कपिल कौल को उम्मीद है कि एक सफल बोलीदाता की घोषणा जून तक हो जाएगी और दिसंबर तक निजी स्वामित्व का हस्तांतरण हो जाएगा.

कपिल कौल बीबीसी से कहते हैं, “वे रणनीतिक रूप से इसको लेकर दृढ़ हैं और मुझे लगता है कि इस बार वे इसको बेचने में सफल होंगे. उन्होंने कई क़र्ज़ों के बारे में ख़याल रखा है और उन्होंने इसको भी स्वीकार किया है कि बोली उद्यम मूल्य पर होगी.”

यह सिर्फ़ एयर इंडिया ही नहीं है जिसके ख़रीदार को ढूंढने के लिए सरकार को इतनी मेहनत करनी पड़ रही है बल्कि भारत की विनिवेश योजना ही एक फ़्लॉप शो की तरह रही है. बीते 12 सालों में सरकार अपने विनिवेश लक्ष्य को सिर्फ़ दो बार ही पूरा कर पाई है.64 साल बाद फिर टाटा संभालेगी एयर इंडिया की कमान | ET Hindi

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विनिवेश एक प्रक्रिया है जिसमें सरकार अपने नियंत्रण वाली सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) की संपत्ति बेचकर अपने फ़ंड्स को बढ़ाती है. सरकारें यह अपने ख़र्चे और आय के बीच अंतर को कम करने के लिए करती हैं.

पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में सरकार अपना लक्ष्य पूरा करने में 14,700 करोड़ रुपये से चूक गई जबकि उस साल लक्ष्य 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाने का था.

एक विश्लेषक अपना नाम न सार्वजनिक करने की शर्त पर कहते हैं, “अधिकतर पीएसयू का ख़राब प्रबंधन है और उनमें सरकारी दख़ल बहुत अधिक है. जो निवेशक इसमें निवेश को लेकर उत्सुक भी हैं वे इस कारण उन्हें मुश्किल मान लेते हैं. उन्हें इन इकाइयों को पूरा बेचना होगा.”Air India, Bharat Petroleum Corporation to be sold by March: FM Nirmala  Sitharaman - Times of India

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31 मार्च को वित्त वर्ष 2020-21 समाप्त हो रहा है और सरकार ने इस साल का लक्ष्य 2.1 लाख करोड़ रुपये का रखा हुआ है जिसमें से वह 28,298.26 करोड़ रुपये ही जुटा पाई है.

डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्वेस्टमेंट ऐंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट के डाटा के अनुसार, सरकार अब तक हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स, भारत डायनेमिक्स, मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स और आईआरसीटीसी में अपनी हिस्सेदार का विनिवेश कर चुकी है.

पिछले साल जुलाई में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 23 पीएसयू को बेचने की अनुमति दे दी है. उनमें से कुछ कंपनियां भारत पंप्स एंड कम्प्रेसर, सीमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया, हिंदुस्तान फ़्लोरोकार्बन, भारत अर्थ मूवर्स और पवन हंस हैं.

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सरकार की योजना पब्लिक लिस्टिंग कंपनी जीवन बीमा निगम (एलआइसी) के विनिवेश की भी है. इसके साथ ही लिस्टिंग और आइडीबीआई बैंक की हिस्सेदारी बेचकर 90,000 करोड़ रुपये इकट्ठा करने की भी योजना है.

अजीबो-ग़रीब लक्ष्यसरकार एयर इंडिया और ऑइल रिफाइनरी भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड को  बेचने की तैयारी में. – Etoinews

वरिष्ठ अर्थशास्त्री डॉक्टर अरुण कुमार का मानना है कि यह लक्ष्य अपने आप में अवास्तविक हैं और सुस्त अर्थव्यवस्था समस्याओं को बढ़ा रही हैं.

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वे कहते हैं, “सुस्त अर्थव्यवस्था के कारण सरकार पिछले साल अपना लक्ष्य पूरा नहीं कर पाई थी. सुस्त अर्थव्यवस्था में संपत्तियां बेचना बेहद मुश्किल होता है क्योंकि जो इन्हें ख़रीदना चाहते हैं उनके पास आय नहीं होती है.”

वे कहते हैं कि “बजट में राजकोषीय घाटा नाटकीय रूप से बढ़ रहा है जो कि सरकारी ख़र्च पर गंभीर असर डालेगा.”

सरकार की कुल आय और ख़र्च के बीच के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है.

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क्या सरकार इस अंतर को किसी भी तरह से भर सकती है? इस सवाल पर डॉक्टर अरुण कुमार कहते हैं, “वे इस अंतर को नहीं भर सकते हैं. वे कॉर्पोरेट टैक्स नहीं बढ़ा सकते हैं. उन्होंने पिछले साल इसे कम किया है. आयकर का संग्रह वैसे ही बेहद कम है क्योंकि महामारी के दौरान कई लोगों ने अपनी नौकरियों को खोया है. अप्रत्यक्ष करों को भी बढ़ाया नहीं जा सकता है क्योंकि यह जीएसटी काउंसिल के पास जाएगा और राज्य इस पर सहमत नहीं होंगे क्योंकि इससे महंगाई पर असर पड़ेगा.”

“वे अपने ख़र्चों को कम कर देंगे जिससे अर्थव्यवस्था सुस्त रहेगी क्योंकि सरकार ख़र्च करके अर्थव्यवस्था को धकेलना नहीं चाहती है, इस कारण माँग भी नहीं बढ़ेगी.”

राजकोषीय घाटे को पाट पाना फ़िलहाल मुश्किल

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केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनविस डॉक्टर अरुण कुमार की बात से सहमति जताते हुए कहते हैं कि यह असंभव है कि सरकार एयर इंडिया या बीपीसीएल (भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड) को इस वित्त वर्ष में बेच पाने में सफल होगी.

“वे एयर इंडिया को बजट के बाद भी बेचने में सफल नहीं होंगे और मार्च से पहले तो बेच ही नहीं पाएंगे. यह बहुत मुश्किल मामला है क्योंकि यह घाटे की कंपनी है और बीपीसीएल से काफ़ी अलग है. बीपीसीएल अभी भी लाभ देने वाली कंपनी है, बावजूद इसके उसे भी बेच पाने में सफलता नहीं मिली है.”

सबनविस बीबीसी से कहते हैं, “विनिवेश का लक्ष्य यथार्थवादी नहीं है. सरकार के पास कभी भी ठोस योजना नहीं होती कि वह किस कंपनी से क्या चाहती है. उन्हें लक्ष्य को 50-80 हज़ार करोड़ रुपये में बदल देना चाहिए जो कि प्राप्त किया जाना संभव है.”

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वे कहते हैं, “इस साल वे राजकोषीय घाटे को पाटने का लक्ष्य प्राप्त नहीं कर सके. वे बाज़ार से अधिक उधार लेंगे. हम राजकोषीय घाटे के अंतर को पाटने के लक्ष्य को तब तक पूरा नहीं कर पाएंगे जब तक कि सरकार अधिक वास्तविक विनिवेश की योजनाओं को नहीं ले आती.”

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