दिल्ली के सीएम ने पीएम की डिग्री मांगी, गुजरात विश्वविद्यालय ने देने से मना कर दिया ,केंद्रीय सूचना आयोग ने डिग्री सार्वजनिक करने का आदेश दिया।
विवि ने आयोग के आदेश को हाई कोर्ट में चैलेंज किया ,HC ने आदेश रद्द कर दिया और केजरीवाल पर 25 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया है।
यह विचित्र निर्णय है। हर प्रत्याशी को अपने हलफनामे में डिग्री वगैरह की जानकारी देनी होती है और गलत जानकारी देने पर सजा का प्रावधान है। फिर किसी जनप्रतिनिधि की डिग्री मांगना अपराध कबसे हुआ और इसे छुपाया क्यों जा रहा है?
दूसरी बात, लोकतंत्र पारदर्शिता का दूसरा नाम है। कानूनी तौर पर अनपढ़ व्यक्ति भी चुनाव लड़ सकता है या किसी पद पर रह सकता है। जब ये कानून बना था तब लगभग पूरा भारत निरक्षर था।
कोई जन प्रतिनिधि पढ़ा लिखा है या नहीं, ये जानना जनता का अधिकार है। जनता से झूठ बोलना भी अपराध है। वैसे भी अमित शाह और अरुण जेटली मिलकर मोदी की एंटायर पॉलिटिकल साइंस की डिग्री सार्वजनिक कर चुके हैं जो कथित रूप से गुजरात यूनिवर्सिटी की है। यूनिवर्सिटी को इसका सत्यापन करने में क्या परेशानी है? या कम से कम यूनिवार्सिटी यही बता दे कि उसने यह सब्जेक्ट दुनिया के एक ही छात्र को क्यों पढ़ाया?
सबसे जरूरी बात, प्रधानमंत्री जी इतने शर्मिंदा या हीन भावना से ग्रस्त क्यों हैं? एक भाषण में वे कहते सुने जा सकते हैं कि मैं ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं हूं। अगर वे कम पढ़े लिखे हैं तो भी तारीफ ही होगी कि कम पढ़ा आदमी सबसे ऊंचे पद पर पहुंचा। जो भी हैं बता दें। उनमें यह हीनताबोध अच्छा नहीं लगता जबकि अगर वे ईमानदारी दिखाएं तो यह बात उनके साहस की भी गवाही देगी।